अन्वार

देहरादून: गढ़वाळि भाषा कार्यशाला मा ‘ळ’ वर्ण अर ध्वनि पर चर्चा

लगभग 100 कवि, लेखक अर साहित्यकार ह्वेनि शामिल

सूण ल्यो

कलश ट्रस्ट, रुद्रप्रयाग का संयोजन मा देहरादून मा द्वी दिनै ‘गढ़वाळि भाषा की वर्णमाला अर कविता व कहानी लेखन’ पर एक कार्यशाला को आयोजन करेगे। यीं कार्यशाला मा गढरत्न नरेंद्र सिंह नेगी मुख्य अतिथि का रूप मा उपस्थित छया।

गढवाळि भाषा का मानकीकरण पर केन्द्रित यीं कार्यशाला मा गढ़़वाल़ी भाषा से जुड़्यां अलग-अलग पक्षों पर अलग-अलग सत्र का माध्यम से बातचीत ह्वे।

प्रथम सत्र का पैला व्याखान मा डॉ नंदकिशोर हटवाल न् गढ़वाळि की वर्णमाला पर विस्तृत व्याखान दे। वूंन बोले कि कुछ वर्ण आज प्रयोग नि हूणा छन अर दगड़ मा गढ़वाल़ी मा कुछ विशेष ध्वनि बि छन जौंका वास्ता नया वर्ण निर्धारित कर्नै जरूरत छ। वूंन गढ़वाळि मा ‘ल’ की एक विशेष ध्वनि का वास्ता ‘ल़’ या ‘ळ’ वर्ण का प्रयोग पर विशेष ध्यान आकृष्ट करे। वूंको विचार छयो कि ‘ळ’ वर्ण भारत की अन्य भाषाओं जनकि मराठी या द्रविड़ भाषाओं मा एक अलग ध्वनि का वास्ता प्रयोग होंद इलै हमतै ‘ल’ की विशेष ध्वनि का वास्ता ‘ल़’ को प्रयोग कर्न चयेंद। परंतु ये विषय मा गिरीश सुंदरियाल न् बोले कि अधिकतर ‘ळ’ वर्ण को प्रयोग होयूं छ त हम तैं ‘ळ’ वर्ण को ही प्रयोग कर्यूं चयेंद। कुछ प्रतिभागियों को यो बि मानणौं छौ कि कंप्यूटर मा आज का युग मा हम तैं अपणि भाषा तैं वैश्विक परिदृश्य मा द्येखणै जरूरत छ।

ये विषय मा मुख्य अतिथि नरेंद्र सिंह नेगी जी को बोलणौ छौ कि हमतै आपस मा मिलि तैं ही निश्चित कर्न पड़लो कि कै ध्वनि का वास्ता को वर्ण उचित रालो। ये मा निश्चित तौर पर सब्बि पक्षों को ध्यान रखे जाण चयेंद अर अगर नई ध्वनि का वास्ता नया वर्ण की आवश्यकता छ त वे पर बि विचार-विमर्श कर्न मा क्वी हर्जा नी छ।

कार्यक्रम मा बाद का व्याखानों मा देवेंद्र प्रसाद जोशी को ‘गढ़वाळि कविता मा कथ्य’, गिरीश सुंदरियाल को ‘गढ़वाळि कविता को इतिहास’ अर बीना बेंजवाल को ‘गढ़वाळि कविता मा शिल्प’ खास छया।

अंतिम सत्र मा एक विराट कवि सम्मेलन को आयोजन ह्वे जैमा लगभग 50 कवियों अपणि रचनाओं को पाठ करे।

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