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यमकेश्वर ब्लॉक का देवराणा गौं मा खोल़ी-पौणी (पंडौ- मंडाण) को आयोजन

नौ दिन अर नौ रात्यूं तक चलण वल़ो यो पंडौ-मंडाण 27 जून बटि छ शुरू

सूण ल्यो

यमकेश्वर क्षेत्र का डांडामण्डल बस्यां देवराना गौं मा 27 मई 2025 सबटि 04 जून 2025 तक खोल़ी–पौणी याने नौ दिन नौ रात्रि पांडव मंडाण लगणू छ। यो मंडाण बल 24 साल बाद लगणू छ , ये से पैली साल 2001 मा यो आयोजन ह्वे छौ अर वां से बि पैली साल 1957 मा यो खोल़ी-पौणी को मंडाण लगि छौ। ये मंडाण मा गौं का सब्बि लोग शामिल होंदन।

उत्तराखंड मा पांडवकालीन सभ्यता का कतनै रूप मा दर्शन होणा रंदन। खोल़ी-पौणी मंडाण ब येको हि एक उदाहरण छ। यो मंडाण नौ दिन तक चलद। ये मा महाभारत का 18 पर्वों तैं गाथा का रूप मा गाये जांद जैमा पाण्डव पक्ष का सब्बि पात्रों तैं चुन्ये जांद। जनकि पाण्डु, कुंती, युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, द्रोपदी, अभिमन्यु श्रीकृष्ण आदि। फिर वो पाण्डव गाथा का हिसाब से अपणो अभिनय करदन। जनि ढोल दमौ का दगड़ जागर लगणा शुरू होंदन वनि यूं पात्रों पर अपण-अपणा नौं का हिसाब से देवता भाव धर्न लगदन। यूं पात्रों तै वे द्यबता को पस्वा ब्वले जांद।

आयोजन से पैल्यी गौं का सयाणा अर जानकार लोग वीं जगा तैं देखी ऐ जांद न जख मा देव वृक्ष कुलैं तैं न्यूतणौ जाण। आयोजन का सातौं दिन सब्बि लोग जागरी का दगड़ वीं जगा पर जांदन अर वीं डाल़ि की पूजा कैरिक वींतै न्यूति कै औंदन। दगड़ मा पैंय्या की डाल़ि तैं बि न्यूते जांद।

आठों दिन फिर सब्या गौं वल़ा वख जांदन जख मा वो कुलैं की डाल़ि न्युति छई। वख मा मण्डाण जागर गायन अर पूजा-पाठ होंद। यीं न्यूतीं डाल़ि पर क्वी बि हथियार नि लगये जांदो बल्कि जो हथियार पंडौं का चौक मा द्यबता का पस्वा का पास होंदन वूंको प्रयोग करे जांद। सब्बि द्यबतौं का पस्वा बारी-बारी की औंदिन अर डाल़ि पर चढ़दन। फिर डाल़ि तैं बिना भुयां धर्यां उखाड़ि ल्हिजये जांद। यीं डाल़ि का दगड़ मा पैयां की डाल़ि तैं बि गांव का मण्डाण मा ल्हिजै की विधिवत पूजापाठ का बाद थर्पे जांद। वेका बाद जागर लगदन, कुलाईं अर पैंय्यां तैं थर्पणा तैं खोळी-पौणी ब्वले जांद।नौंवां दिन सुबेर 06 बजे कुलैं अर पंयां को पूजा बाद गांव परियों पाणी घेरूवा मा विसर्जन करे जांद।

पूरा विधि विधान का दगड़ यीं बार 27 मई 2025 बटि 04 जून 2025 तक देवराणा गांव मा खोळी- पौणी को आयोजन हूणू छ, जैमा गांव का सब्बि रैबासि-प्रवासि भै-बंद शामिल होणो प्रयास कर्ना छन।

साभार: हरीश कंडवाल ‘मनखी’

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