
विश्व पुस्तक मेला 2025 मा प्रगति मैदान दिल्ली का लेखक मंच मा विनसर पब्लिकेशन कंपनी अर धाद ने गढ़वाळी मासिक पत्रिकान संयुक्त रूप से ‘गढ़वाली भाषा रचना संसार ‘ पर एक संवाद कार्यक्रम आयोजित करि। गढ़वाळि भाषा रचना संसार विषय पर प्रसिद्ध रंगकर्मी प्रो.डी.आर.पुरोहित जीन बीज व्याख्यान दे।डॉ पुरोहित जिन गढ़वाळि भाषा उद्गम अर विकास पर विस्तार से जाणकरि दे। वूंन विश्व धरोहर रम्माण अर गढ़वाळ मा होण वाळि रामलीलों का बारा मा बि जाणकरि दे। डॉ पुरोहित जिन बोलि कि रम्माण मा हमारा लोक मा प्रचलित ढोल वादन का तालु पर चलद।
डॉ पुरोहित जीन बोलि कि। गढ़वाळि भाषा वाचिक साहित्य को बि गढ़वाळ मा भण्डार छ पर वेतै इकबटोळ करणै भौत जर्वत छ।वूंन बोलि जु यु काम बगत पर नि होलु त हमारि य विरासत खतम ह्वे जालि।हमारा लोकसाहित्य को यु खजानु जु कलावंतु का कंठ मा बच्यूं छ वेको दस्तावेजीकरण करणो बि जरूरी छ।
ये कार्यक्रम मा पौंछ्यां पत्रकार लेखक मनु पंवारन बोलि कि अपणि भाषा का वास्ता जागरूकता कि जर्वत छ। हम हब लोगु तैं जनगणना का बगत मातृभाषा वाळा कॉलम मा अपणि मातृभाषा गढ़वाळि दर्ज करीं चयेणी छ।
मनु पंवारजिन बोलि कि जब हम गढ़वाळ बिटि भैर अंदां त अपणि भाषा उखि छोड़ी ऐ जंदा जु भाषा का वास्ता अर न वीं भाषा बोलण वाळों का वास्ता अच्छी बात छ।भाषा छुटण से एक संस्कृति अर संस्कार बि छुटि जांद जां से भौत बड़ो नुकसान वीं भाषा अर भाषा बोलण वाळों को होंद।
विश्व पुस्तक मेला 2025 का लेखक यंच का ये संवाद मा पूर्व शिक्षा मंत्री भारत सरकार डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक ‘कि तय्यार करीं द्वी पिक्टोरियल पोथी हिमालय में राम अर रम्माण को लोकार्पण बि ह्वे। यि द्वी पोथि जख पढ़दारों तैं खास जाणकारि देंदन तखि यूं पोथ्यूं मा छपीं फोटो साक्षात दर्शन बि करौंदन।
केंद्रीय हिंदी संस्थान, शिक्षा मंत्रालय मा भाषाविज्ञान का सहायक प्रोफेसर साकेत बहुगुणान संवाद कार्यक्रम कि अध्यक्षता करद बोलि कि गढ़वाळि भाषा एक समृद्ध भाषा छ।गढ़वाळि भाषौ लिखित साहित्य प्रचुर मात्रा मा उपलब्ध छ।कति शिलालेखों अर अन्य प्रलेख ईं भाषा का राजभाषा का रूप मा प्रयुक्त होणा जीवित प्रमाण छन। पिछला द्वी सौ सालु मा साहित्यकारोंन गढ़वाळि भाषा मा साहित्य कि हर विधा मा साहित्य रंचि। सरकारी इमदाद नि होणा बावजूद भि लिख्वार अपणि पोथ्यूं तैं छपवाणा रैनि। लिख्वारु कि यीं साधना का वास्ता सभि भाषाप्रेमी इना साहित्य रंचण वाळों का ऋणी छन। गढ़वाली भाषा संवर्धन मा विनसर प्रकाशन अर धाद गढ़वाळि मासिक पत्रिका कि भि एक महत्त्वपूर्ण भूमिका छ।
साकेत बहुगुणा जिन बोलि कि मातृभाषै चिंता करण से क्वी फैदा नि होण्या,हमारि भाषा तैं तब होंण फैदा जब हम अपणा घर मा अपणा बाल बच्चों दगड़ि गढ़वाळि भाषौ प्रयोग करां।हमारि बातचीत गढ़वाळि मा हो। क्वी बि भाषा तबारी तलक ज्यूंदि रौंद जबारि तलक वीं भाषा बोलदारा वींको उपयोग करणा रौंदन।
बहुगुणाजिन बोलि कि उत्तराखण्डा रैवास्यूं तैं,प्रवास्यूं तैं अपणि नै छिंवाळ दगड़ अपणि भाषा मा बच्यायूं चयेणू छ। अपणि भाषौ माथम बतायूं चैणू छ तबि त नै छ्वाळि अपणि भाषा तैं समझि सकलि।अपणा जरूरी काम मा हमुतैं एक काम यो बि अर्यूं चयेणू छ कि हम अपणि भाषा का प्रकाशित साहित्य खरीदी नै पीढ़ी का हाथु मा सौंप्यां। सोशल मीडिया का ये दौर मा हमुतैं यीं आभासी दुन्या मा आपणि भाषौ प्रयोग गर्व का दगड़ि कर्यूं चैंद।
संवाद कार्यक्रम मा उपस्थित प्रो डी आर पुरोहित, पत्रकार लेखक मनु पंवार,अर सत्र का अध्यक्ष साकेत बहुगुणा जि तैं विनसर पब्लिकेशन का मुखिया कीर्ति नवानी जिन स्मृति चिन्ह भेंट करि। कार्यक्रम को संचालन धाद का संपादक गणेश खुगशाल गणीन करि।