विश्व धरोहर रम्माण: संस्कृति, कला अर विरासत को अदभुत संगम
18 मुखौटा, 18 ताल, 12 ढोल, 12 दमोह, 8 भंकोरा

रिपोर्ट – शेखर रावत
सीमांत जनपद चमोली का स्लूड डुग्रा मा आज विश्व धरोहर रम्माण मेला को भव्य आयोजन ह्वे। पैलि बार जिला प्रशासन का सहयोग से रम्माण मेला आयोजित करेगे।
हर साल अप्रैल मैना का आखिर मा या मई पैला हफ्ता मा आयोजित होण वल़ा विश्व धरोहर रम्माण की धार्मिक पूजा अर अनुष्ठान कार्यक्रम बैसाखी पर्व से शुरू ह्वेगे छौ। येही दिन ये मेला की मुख्य आयोजन की तिथि बि निकल़ि छई । पैला दिनै रात खुणि मुखौटा नृत्य करेगे जबकि दुसरा दिन भूम्याल़ देवता का मंदिर मा पूजापाठ क बाद थौल़ उर्ययेगे। जैमा ज्योतिर्मठ का शंकराचार्य अभि मुक्तेश्वरानंद अर बद्रीनाथ का विधायक लखपत बुटोला शामिल ह्वेनि। यीं बार पर्यटन विभाग द्वारा मेला को आयोजित करेगे छौ । ये मौका पर सेना द्वारा मेडिकल कैंप बि लगये गे। जबकि दूर- दराज बटि अयां लोगों का वास्ता गौं वल़ोन् भंडारा बि करे।
रम्माण को इतिहास लगभग 500 बर्ष पुराणो माने जांद।यूनेस्को न् 2 अक्टूबर 2009 मा रम्माण तैं विश्व सांस्कृतिक धरोहर का रूप मा मान्यता देनि। रम्माण की प्रस्तुति गणतंत्र दिवस पर नई दिल्ली मा बि ह्वेगे। रम्माण एक पारंपरिक लोक उत्सव छ। जैमा रामायण अर महाभारत का पात्रों तैं मुखौटा नृत्य का माध्यम से प्रस्तुत करे जांद। ये आयोजन मा 18 मुखोटा, 18 ताल, 12 ढोल, 12 दमोऊ व 8 भंकोरे को उपयोग करे जांद। रम्माण मा राम, लक्ष्मण, सीता व हनुमान जना पात्रों को नृत्य व गायन का माध्यम से धार्मिक कथाओं को जीवंत चित्रण करे जांद। रम्माण को आयोजन संस्कृति, कला, विरासत अर आस्था को अदभुत मेल छ। जो लोगों तैं अपणि तरफ आकर्षित करद। यो उत्तराखंड की संस्कृति अर विरासत को एक उत्कृष्ट उदाहरण छ, जो दुन्या मा यखै संस्कृति को सज-समाल़ करद।